Karwa Chauth Ki Kahani: करवा चौथ का मुहूर्त, कहानी और संपूर्ण व्रत कथा

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November 1, 2023 (1y ago)

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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस परंपरा के पीछे छिपी कहानी आपको हैरान कर देगी।

करवा चौथ की कहानी बहुत रोचक है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में एक बार देवी पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि आप मुझसे ज्यादा किसे प्यार करते हैं?

भगवान शिव ने कहा, "मैं सभी को बराबर प्यार करता हूँ।"

लेकिन देवी पार्वती इस बात से ख़ुश नहीं थीं। वे चाहती थीं कि भगवान शिव कहें कि वे सिर्फ़ उन्हें ही सबसे ज्यादा प्यार करते हैं।

इसलिए देवी पार्वती ने नाराज़ होकर तपस्या करने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि जब तक भगवान शिव मुझे सबसे ज्यादा प्यार नहीं करते, तब तक मैं खाना-पीना नहीं करूँगी।

देवी पार्वती की तपस्या देखकर भगवान शिव परेशान हो गए। उन्होंने देवताओं से मदद माँगी।

एक देवता ने कहा कि आप देवी पार्वती से कह दीजिए कि आप उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करते हैं।

लेकिन भगवान शिव ने कहा कि वे झूठ नहीं बोल सकते। तब एक अन्य देवता ने सलाह दी कि आप देवी पार्वती को मनाने की कोशिश कीजिए।

भगवान शिव देवी पार्वती के पास गए और बोले- "मुझे तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम ठीक हो जाओगी। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ।"

देवी पार्वती ने कहा, "अगर आप सच्चे दिल से कह रहे हैं, तो आपको मेरी कसम खानी होगी।"

भगवान शिव ने कहा, "ठीक है, मैं कसम खाता हूँ कि मैं तुमसे सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ।"

इस प्रकार भगवान शिव ने देवी पार्वती को मना लिया और देवी पार्वती ने अपना व्रत तोड़ा।

यही करवा चौथ की कथा है, जब भगवान शिव ने देवी पार्वती के लिए कसम खाई थी। इसीलिए करवा चौथ के दिन पति-पत्नी एक दूसरे की कसम खाकर प्रेम का व्रत रखते हैं।

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Karwa Chauth का पावन पर्व आज देशभर में बड़े उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं पूरे दिन न खाते हुए न पीते हुए अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।

रात में चंद्रोदय के समय करवा चौथ की व्रत कथा सुनी जाती है। यहाँ पढ़ें करवा चौथ की सरल और संपूर्ण व्रत कथा।

Karwa Chauth Vrat Katha: साहूकार के सात बेटे

यह कहानी है एक साहूकार के सात लड़कों और एक लड़की की, जिन्होंने करवा चौथ का व्रत रखा था। बेटी ने अपने व्रत की परंपरा का पालन किया, लेकिन एक घटना ने उनके जीवन को बदल दिया।

एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। जो ऐसा प्रतीत होता है जैसे चतुर्थी का चांद हो। बहन ने अपनी भाभी से भी कहा कि चंद्रमा निकल आया है व्रत खोल लें, लेकिन भाभियों ने उसकी बात नहीं मानी और व्रत नहीं खोला।  बहन को अपने भाईयों की चतुराई समझ में नहीं आई और उसे देख कर करवा उसे अर्घ्‍य देकर खाने का निवाला खा लिया।  जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बेहद दुखी हो जाती है। उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही। उसने पूरे साल की चतुर्थी को व्रत किया और अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो'  जिसके फलस्वरूप करवा माता और गणेश जी के आशीर्वाद से उसका पति पुनः जीवित हो गया। जैसे गणपति और करवा माता ने उसकी सुनी, वैसे सभी की सुनें, सभी का सुहाग अमर हो।

इसी कथा को कुछ अलग तरह से सभी व्रत करने वाली महिलाएं पढ़ती और सुनती हैं। करवा चौथ का व्रत रख रही हैं तो गणेश जी और बुढ़िया माई से जुड़ी यह व्रत कथा पढ़ें। 

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार गणेश जी अपने दोनों हाथों में 2 कटोरी लिए पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे। एक कटोरी में दूध था तो वहीं, दूसरी कटोरी में कच्चे चावल थे। लेकिन गणेश जी के पास दोनों कटोरी बहुत छोटी थीं। उनमें बहुत छोड़े दूध और चावल थे।

गणेश जी ने जा-जाकर कई लोगों से खीर बनाने का निवेदन किया लेकिन किसी ने भी उनकी बात नहीं मानी, क्योंकि इतनी कम चीजों से खीर कैसे बनती। आखिर में गणेश जी एक बुढ़िया यानी कि बूढ़ी माई के घर पहुंचे और उनसे प्रार्थना करने लगे कि वह खीर बना लें। 

बूढ़ी अम्मा मान गई और गणेश जी से दोनों कटोरी मांगने लगीं। तब गणेश जी ने बूढ़ी अम्मा से एक बड़ा बर्तन लाने को कहा। जब अम्मा ने कारण पूछा तो उन्होंने बोला कि इन दोनों कटोरी में मौजूद दूध और चावल को खाली करना है ताकि इतनी ज्यादा खीर बन सके और गांव में बंट सके। 

बूढ़ी अम्मा चौंक गईं और बोलीं कि यह तो संभव ही नहीं कि रा से दूध और चावल से बड़ा बर्तन भर जाए लेकिन गणेश जी के कहने पर वह 2 बड़े बर्तन ले आईं और उनमें चावल और दूध डाल दिया। इसके बाद वो बर्तन चावल और दूध से भर गए जिसे देख बूढ़ी अम्मा चौंक गईं। उन्होंने खीर बनाना शुरू किया।

बूढ़ी अम्मा खीर बनाकर बाहर गांव वालों को बुलाने के लिए जाने लगीं और गणेश जी से बोलीं कि आप नहा लीजिए इसके बाद आपको भोग लगाकर ही गांव में खीर बाटूंगी। बूढ़ी अम्मा गांव वालों को बुलाने के लिए बाहर चली गईं कि तभी उनकी बहु आई और खीर देखकर उसका मन ललचा गया और उसने थोड़ी सी खीर खाली। इसके बाद जब अम्मा ने गणेश जी को भोग लगाने के लिए खीर निकालना शुरू किया। तब गणेश जी ने भोग लेने से मना कर दिया।

अम्मा ने कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि माई खीर का भोग तो पहले से ही लग चुका है। गणेश जी ने बताया कि खीर किसी और ने नहीं बल्कि उनकी बहु ने ही खाई है। यह जानकर अम्मा दुखी हो गईं। तब श्री गणेश ने उन्हें समझाया कि खीर नवजात बालक ने खाई है।

गर्भ में पल रहे बालक या गर्भवती मां द्वारा खीर खा लेने से एक प्रकार से भोग गणेश जी को ही लगा है क्योंकि गर्भवती महिला या गर्भ में पल रहा बालक सबसे शुद्ध और पवित्र माने जाते हैं। तब कहीं जाकर बूढ़ी अम्मा संतुष्ट हुईं और गांव के सभी लोगों को खीर खिलाई। साथ ही, गणेश जी ने भी खाई।

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