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KD Jadhav Biography in Hindi

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के. डी. जाधव की जीवनी (KD Jadhav Biography in Hindi)

खशाबा दादासाहेब जाधव (Khashaba Dadasaheb Jadhav) भारतीय कुश्ती के इतिहास में एक ऐसा नाम हैं, जिन्होंने स्वतंत्र भारत के लिए पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया। वे न केवल एक महान पहलवान थे, बल्कि उनकी संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा आज भी लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है।

प्रारंभिक जीवन और परिवार

  • पूरा नाम: खशाबा दादासाहेब जाधव
  • जन्म: 15 जनवरी 1926, गोलेश्वर गाँव, सतारा, महाराष्ट्र
  • पिता: दादासाहेब जाधव (स्वयं एक पहलवान और कोच)
  • मृत्यु: 14 अगस्त 1984, कोल्हापुर, महाराष्ट्र

के. डी. जाधव का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता ने बचपन से ही उन्हें कुश्ती की बारीकियाँ सिखाईं। जाधव पाँच भाइयों में सबसे छोटे थे और बचपन से ही कुश्ती में गहरी रुचि रखते थे। मात्र 8 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने गाँव के लोकल चैंपियन को हराकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।

शिक्षा और कुश्ती में शुरुआत

जाधव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में प्राप्त की। पढ़ाई के साथ-साथ वे नियमित रूप से अखाड़े में अभ्यास करते थे। उनके पिता ने उन्हें अनुशासन और मेहनत का महत्व समझाया, जिसका असर उनके पूरे करियर में दिखा।

ओलंपिक में ऐतिहासिक उपलब्धि

1948 लंदन ओलंपिक

के. डी. जाधव ने पहली बार 1948 के लंदन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने फ्लाईवेट वर्ग में भाग लिया और छठा स्थान प्राप्त किया, जो उस समय भारतीय कुश्ती के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी।

1952 हेलसिंकी ओलंपिक

1952 में, हेलसिंकी (फिनलैंड) में आयोजित ओलंपिक में जाधव ने बैंटमवेट वर्ग में भाग लिया। उन्होंने कनाडा, मैक्सिको और जर्मनी के पहलवानों को हराया। सेमीफाइनल में हारने के बावजूद, उन्होंने रेपचेज राउंड में शानदार प्रदर्शन करते हुए कांस्य पदक (ब्रॉन्ज मेडल) जीता। यह स्वतंत्र भारत का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक था।

उनकी इस ऐतिहासिक जीत के बाद, पूरे देश में उनका भव्य स्वागत हुआ। कराड रेलवे स्टेशन पर 151 बैलगाड़ियों के साथ उनका स्वागत किया गया, जो उनकी लोकप्रियता और सम्मान को दर्शाता है।

पुलिस सेवा और बाद का जीवन

1955 में के. डी. जाधव ने महाराष्ट्र पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के रूप में सेवा शुरू की। वे 27 वर्षों तक पुलिस विभाग में कार्यरत रहे और असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर के पद से सेवानिवृत्त हुए। हालांकि, सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें पेंशन के लिए संघर्ष करना पड़ा और जीवन के अंतिम वर्षों में आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा।

निधन

14 अगस्त 1984 को एक सड़क दुर्घटना में के. डी. जाधव का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद ही उन्हें देश में उचित सम्मान मिलना शुरू हुआ।

सम्मान और विरासत

  • के. डी. जाधव को उनकी उपलब्धियों के बावजूद पद्म पुरस्कार नहीं मिला, जो आज भी एक चर्चा का विषय है।
  • 2001 में, उन्हें मरणोपरांत अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • पुणे के बालवाड़ी स्टेडियम का नाम उनके सम्मान में "के. डी. जाधव स्टेडियम" रखा गया है।
  • उनकी जीवन यात्रा पर कई लेख और डॉक्युमेंट्री बन चुकी हैं।

के. डी. जाधव के प्रेरणादायक तथ्य

  • स्वतंत्र भारत के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता।
  • बचपन से ही कुश्ती में गहरी रुचि और अनुशासन।
  • आर्थिक तंगी के बावजूद देश के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि।
  • आज भी भारतीय पहलवानों के लिए प्रेरणा स्रोत।

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