दिलचस्प बातें: केवल शिवपुराण के अनुसार, हनुमान ये कठिन कार्य कर सकते थे, भगवान शिव ने त्रेतायुग में भगवान श्री राम की मदद करने और दुष्टों का नाश करने के लिए वानर जाति में हनुमान के रूप में अवतार लिया था।
हनुमान जी को भगवान शिव का सर्वश्रेष्ठ अवतार कहा जाता है। जब भी श्री राम-लक्ष्मण पर कोई संकट आया, हनुमानजी ने उन्हें अपनी बुद्धि और पराक्रम से दूर कर दिया। वाल्मीकि रामायण के उत्तर प्रकरण में, भगवान श्री राम ने स्वयं अगस्त्य मुनि से कहा है कि उन्होंने हनुमान की शक्ति से ही रावण पर विजय प्राप्त की है।
भगवान हनुमानजी के बारे में कुछ रोचक तथ्य
हनुमान अष्टमी (2 जनवरी, शनिवार) के अवसर पर हम आपको हनुमानजी द्वारा किए गए कुछ ऐसे ही कार्यों के बारे में बता रहे हैं, जो किसी और के नियंत्रण में नहीं थे।
हनुमानजी के पांच सगे भाई भी थे
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हनुमानजी के पांच भाई भी थे और उनका विवाह भी उसी समय हुआ था। यह उल्लेख “ब्रह्माण्ड पुराण” में मिलता है। इस पुराण में भगवान हनुमान के पिता केसरी और उनके वंश का वर्णन है। इस पुराण में वर्णित है कि वानर राज केसरी के 6 पुत्र थे, सबसे बड़ा पुत्र “हनुमानजी” थे। हनुमानजी के भाइयों के नाम क्रमशः मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गातिमान और धृतिमान थे और उन सभी के बच्चे थे, जिनसे उनका वंश कई साल पुराना था। तक चला
कौन हैं भगवान हनुमान – हनुमानजी बंदर थे?
हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। नए शोध के रूप में प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज (फरवरी 2015) से लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था।
शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलुप्त वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था। हनुमानजी के संबंध में यह प्रश्न प्राथमिकता: सर्वत्र उठता है कि ‘क्या हनुमानजी बंदर थे?
इसके लिए कुछ लोग रामायणादि ग्रंथों में लिखित हनुमानजी और उनके दंडात्मक बंधनव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ ‘वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम’ आदि विशेषणों को पढ़कर अपने वान प्रजाति का होने का उदाहरण देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी पुच्छ, लिंगुल, बाल्धी और लम से लंकादन का प्रत्यक्ष चमत्कार इसका प्रमाण है।
यह माशिब है कि उनकी सभी जगह सपुच्छ प्रतिमाओं को देखकर उनके पशु या बंदर जैसा होना चाहिए होता है। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उन्हें लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है।
दरअसल, आज से 9 लाख साल पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानों से कहीं ज्यादा थी।
अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गया, बुटली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिसकी पूछ योग्यता: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है।
अनेक राक्षसों का वध
युद्ध में हनुमानजी ने अनेक पराक्रमी राक्षसों का वध किया, इनमें धूम्राक्ष, अकंपन, देवांतक, त्रिशिरा, निकुंभ आदि प्रमुख थे। हनुमानजी और रावण में भी भयंकर युद्ध हुआ था।

रामायण के अनुसार हनुमानजी का थप्पड़ खाकर रावण उसी तरह कांप उठा था, जैसे भूकंप आने पर पर्वत हिलने लगते हैं। हनुमानजी के इस पराक्रम को देखकर वहां उपस्थित सभी वानरों में हर्ष छा गया था।
- प्रहलाद की कथा – भक्त प्रहलाद की कहानी
- राजा को चिंता – बच्चों के लिए हिंदी कहानी
समुद्र लांघना
माता सीता की खोज करते समय जब हनुमान, अंगद, जामवंत आदि वीर समुद्र तट पर पहुंचे तो 100 योजन विशाल समुद्र को देखकर उनका उत्साह कम हो गया। तब अंगद ने वहां उपस्थित सभी पराक्रमी वानरों से उनके छलांग लगाने की क्षमता के बारे में पूछा। तब किसी वानर ने कहा कि वह 30 योजन तक छलांग लगा सकता है, तो किसी ने कहा कि वह 50 योजन तक छलांग लगा सकता है।

ऋक्षराज जामवंत ने कहा कि वे 90 योजन तक छलांग लगा सकते हैं। सभी की बात सुनकर अंगद ने कहा कि- मैं 100 योजन तक छलांग लगाकर समुद्र पार तो कर लूंग, लेकिन लौट पाऊंगा कि नहीं, इसमें संशय है। तब जामवंत ने हनुमानजी को उनके बल व पराक्रम का स्मरण करवाया और हनुमानजी ने 100 योजन विशाल समुद्र को एक छलांग में ही पार कर लिया।
माता सीता की खोज
समुद्र लांघने के बाद हनुमान जब लंका पहुंचे तो लंका के द्वार पर ही लंकिनी नामक राक्षसी से उन्हें रोक लिया। हनुमानजी ने उसे परास्त कर लंका में प्रवेश किया। हनुमानजी ने माता सीता को बहुत खोजा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दी। फिर भी हनुमानजी के उत्साह में कोई कमी नहीं आई।

मां सीता के न मिलने पर हनुमानजी ने सोचा कहीं रावण ने उनका वध तो नहीं कर दिया, यह सोचकर उन्हें बहुत दु:ख हुआ। लेकिन इसके बाद भी वे लंका के अन्य स्थानों पर माता सीता की खोज करने लगे। अशोक वाटिका में जब Hanuman Ji ने माता सीता को देखा तो वे अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार हनुमानजी ने यह कठिन काम भी बहुत ही सहजता से कर दिया।
अक्षयकुमार का वध व लंका दहन
माता सीता की खोज करने के बाद हनुमानजी ने उन्हें भगवान श्रीराम का संदेश सुनाया। इसके बाद हनुमानजी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया। ऐसा Hanuman Ji ने इसलिए किया क्योंकि वे शत्रु की शक्ति का अंदाजा लगा सकें। जब रावण के सैनिक हनुमानजी को पकड़ने आए तो उन्होंने उनका वध कर दिया।

तब रावण ने अपने पराक्रमी पुत्र अक्षयकुमार को भेजा, हनुमानजी ने उसको भी मार दिया। हनुमानजी ने अपना पराक्रम दिखाते हुए लंका में आग लगा दी। पराक्रमी राक्षसों से भरी लंका में जाकर माता सीता को खोज करना व राक्षसों का वध कर लंका को जलाने का साहस हनुमानजी ने बड़ी ही सहजता से कर दिया।
विभीषण को अपने पक्ष में करना
श्रीरामचरित मानस के अनुसार (Tulsidas Ji )-जब Hanuman Ji लंका में माता सीता की खोज कर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात विभीषण से हुई। रामभक्त हनुमान को देखकर विभीषण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पूछा कि- क्या राक्षस जाति का होने के बाद भी श्रीराम मुझे अपनी शरण में लेंगे। तब हनुमानजी ने कहा कि- भगवान श्रीराम अपने सभी सेवकों से प्रेम करते हैं।

जब विभीषण रावण को छोड़कर श्रीराम की शरण में आए तो सुग्रीव, जामवंत आदि ने कहा कि ये रावण का भाई है। इसलिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। उस स्थिति में हनुमानजी ने ही विभीषण का समर्थन किया था। अंत में, विभीषण के परामर्श से ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।
राम-लक्ष्मण के लिए पहाड़ लाना
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, युद्ध के दौरान रावण के पुत्र इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र चला दिया और भगवान श्री राम और लक्ष्मण को बेहोश कर दिया। तब रक्षराज जामवंत ने हनुमानजी से कहा कि तुम शीघ्र ही हिमालय पर्वत पर जाओ, वहां तुम्हें ऋषभ और कैलाश शिखर दिखाई देंगे।

उनके बीच में दवाओं का पहाड़ है, आप इसे ले आइए। जामवंतजी के कहने पर हनुमान जी तुरंत पर्वत लेने के लिए उड़ गए। अपनी बुद्धि और पराक्रम के बल पर, हनुमान दवाओं के पहाड़ समय के साथ ऊपर आए। उस पर्वत की औषधियों की सुगंध से राम-लक्ष्मण और करोड़ों घायल वानर पुन: स्वस्थ हो गए।
ब्रह्मचारी होने के बावजूद हनुमानजी एक पुत्र के पिता थे
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ब्रह्मचारी होने के बावजूद हनुमानजी एक पुत्र के पिता थे। हनुमानजी के पुत्र का नाम “मकरध्वज” था और उनका जन्म एक मछली के पेट से हुआ था। जब लंका जलने के बाद हनुमानजी ने अपनी पूँछ और अपना शरीर जलाया। जब समुद्र में ठंडा होने के लिए डूबा, तो एक मछली ने उनके शरीर से निकलने वाले पसीने को निगल लिया। बाद में मकरध्वज का जन्म उस मछली की परत से हुआ।
निष्कर्ष:
जी हाँ दोस्तों, आपको आज की पोस्ट कैसी लगी, आज हमने आपको बताया Hanuman Ji Ke Rochak Tathay और Hanuman Ji Ke Rahshay बहुत आसान शब्दों में, हमने आज की पोस्ट में भी सीखा।
- उत्तर प्रदेश में कितने जिले है? यूपी के जिलों की सूची
- करवा चौथ की पूजन सामग्री – Karwa Chauth Puja Samagri
- भारत में कितने गाँव हैं? गांवों की सूची
आज मैंने इस पोस्ट में Lord Hanuman Facts In Hindi सीखा। आपको इस पोस्ट की जानकारी अपने दोस्तों को भी देनी चाहिए। वे और सोशल मीडिया पर भी यह पोस्ट ज़रूर साझा करें। इसके अलावा, कई लोग इस जानकारी तक पहुंच सकते हैं।
यदि आप हमारी वेबसाइट के नवीनतम अपडेट प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको हमारी Sahu4You वेबसाइट सब्सक्राइब करना होगा।
नई तकनीक के बारे में जानकारी के लिए हमारे दोस्तों, फिर मिलेंगे ऐसे ही नई प्रौद्योगिकी की जानकारी के बारे में, हमारी इस पोस्ट को पढ़ने के लिए धन्यवाद, और अलविदा दोस्तों आपका दिन शुभ हो।