राव तुला राम कौन थे?
उनके जीवन संघर्ष, ब्रिटिशों के खिलाफ संघर्ष और मृत्यु पर विस्तृत हिंदी निबंध – जानिए इस महान नेता Rao Tula Ram की जीवनी जिन्होंने 1857 के युद्ध में अपना योगदान दिया था।
राजा राव तुलाराम यह एक ऐसा नाम है जिसके सुनते ही भारतीयों का सीना चौड़ा हो जाता है, क्योकि राव तुलाराम एक ऐसे शक्सियत थे जिन्होंने भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम 1857 के लड़ाई में इन्होने अंग्रेजो को धुल चटाया था।
राजा राव तुलाराम के बारे में यह कहा जाता है की 1857 की लड़ाई में लड़ने वाली सभी वीर और प्रमुख नेताओ में से एक थे। इनकी यूद्ध कौशल एवं शासन करने की एक अलग ही तरीका था।
जीवन परिचय
इन्होने हरियाणा के दक्षिणी – पश्चिमी हिस्से से अंगेजी सरकार को खदेड़ दिए एवं दिल्ली में विद्रोही सैनिको को हथियार भेजने लगे।
Name
Rao Tula Ram
Birth Date
9 December 1825
Birth Place
Rewari, Haryana, India
Death
23 September 1863
जन्म और शिक्षा:
भारत के वीरो की भूमि पर कई वीर आए इन वीरो में से एक वीर राजा राव तुलाराम भी सम्मिलित थे। तुलाराम हरियाणा के रेवाड़ी जिला जिसे आज भी अहिरवाल का लन्दन कहा जाता है इस प्रसिद्द लन्दन के राजा राजा राव तुलाराम थे।
9 दिसम्बर 1825 इतिहास का एक ऐतिहासिक दिन है के रूप में जाना जाता है। इस Date को तुलाराम का जन्म हरियाणा के रेवाड़ी जिले स्थित रामपुरा गाँव में हुआ था। इनके पिता राव पूरण सिंह थे जो राव तेज सिंह के सुपुत्र थे, एवं इनकी माता ज्ञान कुमारी जो राव ज़हारी सिंह की पुत्री थी।
शुरुवाती जीवन:
तुलाराम का आरंभिक नाम तुलासिंह था। इनकी आरंभिक शिक्षा इनके पांच वर्ष के उम्र से आरम्भ हो गया था। इनके पढाई के साथ इन्हें अस्त्र संचालन और घुड़सवारी की भी शिक्षा दी जाने लगी लगी।
जब तुलाराम 14 वर्ष के हुए उस समय उनके पिता की मृत्यु निमोनिया के होने के वजह से हुई, पिता के मृत्यु के कुछ समय के बाद तुलासिंह को राज्यभार सँभालने के लिए राजगद्दी सौपा गया।
राजगद्दी पर बैठते ही इनका नाम तुलासिंह से तुलाराम हो गया और उसके बाद लोग उन्हें तुलाराम के नाम से जानने लगे।
संघर्ष:
राजा राव तुलाराम का राज्य विस्तार कनीना, बवाल, फरुखनगर, गुडगाव, फरीदाबाद से होते हुए फिरोजपुर तक फैला हुआ था। तुलाराम का शासन अच्छे से चल रहा था परन्तु इनके शासन काल में अंग्रेजो का आतंक काफी बढ़ता जा रहा था जो तुलाराम को काफी आक्रोशित करता था और इसके बाद तुलाराम मौका का इंतजार करने लगे।
इसी दरमियान बंगाल में क्रांति का आगाज हुआ जो धीरे धीरे पुरे भारत वर्ष में फ़ैल गया, इस क्रांति को लोग 1857 की क्रांति के रूप में जानते है। यह तुलाराम को अंग्रेजो को सबक सिखाने का अच्छा मौका मिल गया था। बादशाह बहादुरशाह के निर्देशानुसार तुलाराम और उनके चचेरे भाई गोपाल देव अहिरवाल में अपनी सेना का नेतृत्व किया।
इस क्रांति की आग काफी जोर शोर से फैला हुआ था। तुलाराम के गतिविधि से अंग्रेज इस बात को भली भाती समझ चुके थे की अगर उन्हें दिल्ली की गद्दी पर चैन से राज करना है तो सबसे पहले तुलाराम पर काबू पाना आवश्यक है और इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए ब्रिगेडियर जनरल शोबर्स के सहायता से बड़े ही तयारी के साथ 2 अक्टूबर 1857 को तुलाराम को बर्बाद करदेने के इरादे से निकला।
परन्तु तुलाराम के द्वारा की गई सैनिक तैयारी को देख कर हैरान हो गया, अंग्रेज तुलाराम को अपने घेरे में लेने के लिए पुरे एक वर्ष तक कोशिस करता रहा परन्तु असफल रहा।
वही दुसरे तरफ से 10 नवम्बर को कर्नल जैरौल्ड के नेतृत्व में पूर्ण रूपेण हथियार से लैश सैनिक तुकाराम के खिलाफ निकली। फौज जैसे ही नसीबपुर के मैदान में पहुची राव के सैनिको ने अंग्रेजो पर अचानक हमला कर बैठे।
तुलाराम के द्वारा की गई इस अचानक हमले से अंग्रेजो का हालत ख़राब हो गयी और इस युद्ध में जैरौल्ड समेत कई अफसर भी मारे गये एवं इस युद्ध में तुलाराम भी घायल हुए।
अब अपने आगे की रणनीति को बनाने के लिए तात्या टोपे से मुलाकात करने गये परन्तु तात्या टोपे को 1862 में ही बंदी बना लिया गया था जिस वजह से इनकी मुलाकात नहीं हो पाई। और इसके बाद इन्होने अन्य देशो से सैनिक सहायता के लिए भारत को छोड़ रूस चले गये।
मृत्यु:
तुलाराम भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र करने के लिए सैनिक सहायता के प्रस्ताव के साथ भारत से बाहर निकले और अफगानिस्तान और ईरान के शासक से मुलाकर कर सहायता की मांग किए।
इन देशो में सहायता का मांग कर रूस चले गये परन्तु इनके शरीर में किसी बीमारी का संक्रमण होने के कारण धीरे धीरे पुरे शरीर में फैलता गया और 23 सितम्बर 1863 को बीमारी के कारन इनका देहांत काबुल अफगानिस्तान में हो गया।
सरकार इनको सम्मान के तौर पर 23 सितम्बर को शहीद दिवस के रूप में मनाते है।