तत्त्वमसि महावाक्य, Tatwamasi Maha Wakya
तत्त्वमसि (तत् त्वम् असि) भारत के शास्त्रों व उपनिषदों में वर्णित महावाक्यों में से एक है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, वह तुम ही हो। वह दूर नहीं है, बहुत पास है, पास से भी ज्यादा पास है। तेरा होना ही वही है।
सृष्टि के जन्म से पूर्व, द्वैत के अस्तित्त्व से रहित, नाम और रूप से रहित, एक मात्र सत्य-स्वरूप, अद्वितीय ‘ब्रह्म’ ही था। वही ब्रह्म आज भी विद्यमान है। वह शरीर और इन्द्रियों में रहते हुए भी, उनसे परे है। आत्मा में उसका अंश मात्र है। उसी से उसका अनुभव होता है, किन्तु वह अंश परमात्मा नहीं है। वह उससे दूर है। वह सम्पूर्ण जगत में प्रतिभासित होते हुए भी उससे दूर है।
यह मंत्र द्वारका धाम या शारदा मठ का महावाक्य भी है, जो भारत में पश्चिम में स्थित चार धामों में से एक है।
महावाक्य का अर्थ होता है?
यदि आप इस एक वाक्य का पालन करते हैं और अपने जीवन की अंतिम स्थिति पर शोध करते हैं, तो आपका जीवन सफलतापूर्वक पूरा होगा। इसलिए इसे महावाक्य कहा जाता है।